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गंगा संरक्षण के लिए आवश्यक है घड़ियाल का अस्तित्व

गंगा संरक्षण के लिए आवश्यक है घड़ियाल का अस्तित्व
का अस्तित्व

 

भास्कर समाचार सेवा उत्तरकाशी। जलीय जीव ही नदी का जीवन होते हैं। जिस नदी में जितने जलीय जीव होंगे, इसका मतलब होगा कि नदी का पानी उतना ही शुद्ध है। यह बात गंगा विश्व धरोहर मंच के संयोजक डॉ. शम्भू प्रसाद नौटियाल ने कही। उन्होंने कहा कि पारंपरिक रूप से घड़ियाल गंगा मैया का वाहन माना जाता है। यह मगरमच्छों की एक विशाल प्रजाति है, इसका नाम घड़ियाल इसके रूप की वजह से ही पड़ा। दरअसल इसकी थूथन बहुत लम्बी होती है जो अंत में फूल कर घड़े की आकार की दिखाई देने लगती है। इसी वजह से लोगों ने इसे घड़ियाल कहना शुरू कर दिया होगा। घड़ियाल जीव वैज्ञानिक नाम गेवयालिस गॅजेटिकस है जो सरीसृप या रेप्टाइल वर्ग का प्राणि है। यह अधिकतर समय जल में व्यतीत करते हैं, केवल रेतीले नदी किनारे पर धूप सेकनें और अंडे देने के लिए पानी से बाहर आते हैं। इनके 102-110 नुकीले दाँत होते हैं परन्तु वे खाने को चबाने की बजाय निगल लेते हैं। घड़ियाल के शरीर का तापमान इंसान से कम होता है। इसलिए सर्दी आते ही यह धूप में घंटों मुंह खोलकर लेटे रहते हैं। इनकी ऊपरी परत मोटी होती है, इसलिए गर्मी को सोखती नहीं है। इसीलिए यह मुंह खोलकर लेटते हैं। एक मगरमच्छ या घड़ियाल एक दिन में चार से पांच घंटे धूप में लेटता है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ़ नेचर (आईयूसीएन) ने 1971 में भारतीय घड़ियाल को रेड लिस्ट में रखा है। अतिक्रमण, अनियंत्रित मछली पकड़ने और शिकार घड़ियाल के लिए खतरा है। औषधीय उपयोगों के लिए भी घड़ियाल के अंडे एकत्र किए जाते हैं। नर घड़ियालों को उनके घड़ा के लिए शिकार किया जाता है। बांध, बैराज और नदी से अत्यधिक पानी निकालने से इसके प्राकृतिक वास नष्ट हो रहे हैं। घड़ियाल के लंबे मुह और थूथन के कारण मछली पकड़ने के जाल में फंसने से जान चली जाती है।

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